I have grown up reading and listening to Ashok chakradhar, so no wonder he is my fav poet and inspiration too in my writings. This is the first poem of his I am uploading here, hope fully u ll like. This is one of the only few poem that was published not in his book but in Kaka Hathrasi's kavita sangrah " Khilkhilahat ". we don get to read him a lot these days hope you find it good .
पिछले दिनों
चालीसवाँ राष्ट्रीय भ्रष्टाचार महोत्सव मनाया गया।
सभी सरकारी संस्थानों को बुलाया गया।
भेजी गई सभी को निमंत्रण-पत्रावली
साथ मे प्रतियोगिता की नियमावली।
लिखा था-
प्रिय भ्रष्टोदय,
आप तो जानते हैं
भ्रष्टाचार हमारे देश की
पावन-पवित्र सांस्कृतिक विरासत है
हमारी जीवन-पद्धति है
हमारी मजबूरी है, हमारी आदत है।
आप अपने विभागीय भ्रष्टाचार का
सर्वोत्कृष्ट नमूना दिखाइए
और उपाधियाँ तथा पदक-पुरस्कार पाइए।
व्यक्तिगत उपाधियाँ हैं-
भ्रष्टशिरोमणि, भ्रष्टविभूषण
भ्रष्टभूषण और भ्रष्टरत्न
और यदि सफल हुए आपके विभागीय प्रयत्न
तो कोई भी पदक, जैसे-
स्वर्ण गिद्ध, रजत बगुला
या कांस्य कउआ दिया जाएगा।
सांत्वना पुरस्कार में
प्रमाण-पत्र और
भ्रष्टाचार प्रतीक पेय ह्वस्की का
एक-एक पउवा दिया जाएगा।
प्रविष्टियाँ भरिए
और न्यूनतम योग्यताएँ पूरी करते हों तो
प्रदर्शन अथवा प्रतियोगिता खंड में स्थान चुनिए।
कुछ तुले, कुछ अनतुले भ्रष्टाचारी
कुछ कुख्यात निलंबित अधिकारी
जूरी के सदस्य बनाए गए,
मोटी रकम देकर बुलाए गए।
मुर्ग तंदूरी, शराब अंगूरी
और विलास की सारी चीज़ें जरूरी
जुटाई गईं
और निर्णायक मंडल
यानी कि जूरी को दिलाई गईं।
एक हाथ से मुर्गे की टाँग चबाते हुए
और दूसरे से चाबी का छल्ला घुमाते हुए
जूरी का एक सदस्य बोला-
‘मिस्टर भोला !
यू नो
हम ऐसे करेंगे या वैसे करेंगे
बट बाइ द वे
भ्रष्टाचार नापने का पैमाना क्या है
हम फ़ैसला कैसे करेंगे ?
मिस्टर भोला ने सिर हिलाया
और हाथों को घूरते हुए फरमाया-
‘चाबी के छल्ले को टेंट में रखिए
और मुर्गे की टाँग को प्लेट में रखिए
फिर सुनिए मिस्टर मुरारका
भ्रष्टाचार होता है चार प्रकार का।
पहला-नज़राना !
यानी नज़र करना, लुभाना
यह काम होने से पहले दिया जाने वाला ऑफर है
और पूरी तरह से
देनेवाले की श्रद्धा और इच्छा पर निर्भर है।
दूसरा-शुकराना!
इसके बारे में क्या बताना !
यह काम होने के बाद बतौर शुक्रिया दिया जाता है
लेने वाले को
आकस्मिक प्राप्ति के कारण बड़ा मजा आता है।
तीसरा-हकराना, यानी हक जताना
-हक बनता है जनाब
बँधा-बँधाया हिसाब
आपसी सैटिलमेंट
कहीं दस परसेंट, कहीं पंद्रह परसेंट
कहीं बीस परसेंट ! पेमेंट से पहले पेमेंट।
चौथा जबराना।
यानी जबर्दस्ती पाना
यह देनेवाले की नहीं
लेनेवाले की
इच्छा, क्षमता और शक्ति पर डिपेंड करता है
मना करने वाला मरता है।
इसमें लेनेवाले के पास पूरा अधिकार है
दुत्कार है, फुंकार है, फटकार है।
दूसरी ओर न चीत्कार, न हाहाकार
केवल मौन स्वीकार होता है
देने वाला अकेले में रोता है।
तो यही भ्रष्टाचार का सर्वोत्कृष्ट प्रकार है
जो भ्रष्टाचारी इसे न कर पाए उसे धिक्कार है।
नजराना का एक पाइंट
शुकराना के दो, हकराना के तीन
और जबराना के चार
हम भ्रष्टाचार को अंक देंगे इस प्रकार।’
रात्रि का समय
जब बारह पर आ गई सुई
तो प्रतियोगिता शुरू हुई।
सर्वप्रथम जंगल विभाग आया
जंगल अधिकारी ने बताया-
- ‘इस प्रतियोगिता के
- सारे फर्नीचर के लिए
- चार हजार चार सौ बीस पेड़ कटवाए जा चुके हैं
- और एक-एक डबल बैड, एक-एक सोफा-सैट
- जूरी के हर सदस्य के घर, पहले ही भिजवाए जा चुके हैं
- हमारी ओर से भ्रष्टाचार का यही नमूना है,
- आप सुबह जब जंगल जाएँगे
- तो स्वयं देखेंगे
- जंगल का एक हिस्सा अब बिलकुल सूना है।’
- ‘इस प्रतियोगिता के
अगला प्रतियोगी पी.डब्लू.डी. का
उसने बताया अपना तरीका-
- ‘हम लैंड-फिलिंग या अर्थ-फिलिंग करते हैं।
- यानी ज़मीन के निचले हिस्सों को
- ऊँचा करने के लिए मिट्टी भरते हैं।
- हर बरसात में मिट्टी बह जाती है,
- और समस्या वहीं-की-वहीं रह जाती है।
- जिस टीले से हम मिट्टी लाते हैं
- या कागजों पर लाया जाना दिखाते हैं
- यदि सचमुच हमने उतनी मिट्टी को डलवाया होता
- तो आपने उस टीले की जगह पृथ्वी में
- अमरीका तक का आरपार गड्ढा पाया होता।
- लेकिन टीला ज्यों-का-त्यों खड़ा है।
- उतना ही ऊँचा, उतना ही बड़ा है
- मिट्टी डली भी और नहीं भी
- ऐसा नमूना नहीं देखा होगा कहीं भी।’
- ‘हम लैंड-फिलिंग या अर्थ-फिलिंग करते हैं।
क्यू तोड़कर अचानक
अंदर घुस आए एक अध्यापक-
- ‘हुजूर
- मुझे आने नहीं दे रहे थे
- शिक्षा का भ्रष्टाचार बताने नहीं दे रहे थे
- प्रभो !’
- ‘हुजूर
एक जूरी मेंबर बोला-‘चुप रहो
- चार ट्यूशन क्या कर लिए
- कि भ्रष्टाचारी समझने लगे
- प्रतियोगिता में शरीक होने का दम भरने लगे !
- तुम क्वालिफाई ही नहीं करते
- बाहर जाओ-
- नेक्स्ट, अगले को बुलाओ।’
- चार ट्यूशन क्या कर लिए
अब आया पुलिस का एक दरोगा बोला-
- ‘हम न हों तो भ्रष्टाचार कहाँ होगा ?
- जिसे चाहें पकड़ लेते हैं, जिसे चाहें रगड़ देते हैं
- हथकड़ी नहीं डलवानी दो हज़ार ला,
- जूते भी नहीं खाने दो हज़ार ला,
- पकड़वाने के पैसे, छुड़वाने के पैसे
- ऐसे भी पैसे, वैसे भी पैसे
- बिना पैसे हम हिलें कैसे ?
- जमानत, तफ़्तीश, इनवेस्टीगेशन
- इनक्वायरी, तलाशी या ऐसी सिचुएशन
- अपनी तो चाँदी है,
- क्योंकि स्थितियाँ बाँदी हैं
- डंके का ज़ोर हैं
- हम अपराध मिटाते नहीं हैं
- अपराधों की फ़सल की देखभाल करते हैं
- वर्दी और डंडे से कमाल करते हैं।’
- ‘हम न हों तो भ्रष्टाचार कहाँ होगा ?
फिर आए क्रमश:
एक्साइज वाले, इनकम टैक्स वाले,
स्लमवाले, कस्टमवाले,
डी.डी.ए.वाले
टी.ए.डी.ए.वाले
रेलवाले, खेलवाले
हैल्थवाले, वैल्थवाले,
रक्षावाले, शिक्षावाले,
कृषिवाले, खाद्यवाले,
ट्रांसपोर्टवाले, एअरपोर्टवाले
सभी ने बताए अपने-अपने घोटाले।
प्रतियोगिता पूरी हुई
तो जूरी के एक सदस्य ने कहा-
- ‘देखो भाई,
- स्वर्ण गिद्ध तो पुलिस विभाग को जा रहा है
- रजत बगुले के लिए
- पी.डब्लू.डी
- डी.डी.ए.के बराबर आ रहा है
- और ऐसा लगता है हमको
- काँस्य कउआ मिलेगा एक्साइज या कस्टम को।’
- ‘देखो भाई,
निर्णय-प्रक्रिया चल ही रही थी कि
अचानक मेज फोड़कर
धुएँ के बादल अपने चारों ओर छोड़कर
श्वेत धवल खादी में लक-दक
टोपीधारी गरिमा-महिमा उत्पादक
एक विराट व्यक्तित्व प्रकट हुआ
चारों ओर रोशनी और धुआँ।
जैसे गीता में श्रीकृष्ण ने
अपना विराट स्वरूप दिखाया
और महत्त्व बताया था
कुछ-कुछ वैसा ही था नज़ारा
विराट नेताजी ने मेघ-मंद्र स्वर में उचारा-
- ‘मेरे हज़ारों मुँह, हजारों हाथ हैं
- हज़ारों पेट हैं, हज़ारों ही लात हैं।
- नैनं छिंदति पुलिसा-वुलिसा
- नैनं दहति संसदा !
- नाना विधानि रुपाणि
- नाना हथकंडानि च।
- ये सब भ्रष्टाचारी मेरे ही स्वरूप हैं
- मैं एक हूँ, लेकिन करोड़ों रूप हैं।
- अहमपि नजरानम् अहमपि शुकरानम्
- अहमपि हकरानम् च जबरानम् सर्वमन्यते।
- भ्रष्टाचारी मजिस्ट्रेट
- रिश्वतख़ोर थानेदार
- इंजीनियर, ओवरसियर
- रिश्तेदार-नातेदार
- मुझसे ही पैदा हुए, मुझमें ही समाएँगे
- पुरस्कार ये सारे मेरे हैं, मेरे ही पास आएँगे।’
- ‘मेरे हज़ारों मुँह, हजारों हाथ हैं
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