Thursday, July 22, 2010

यारों! शादी मत करना

Sunil Jogi's third creation on this blog.. read for the first time liked it..


यारों! शादी मत करना

यारों! शादी मत करना, ये है मेरी अर्ज़ी
फिर भी हो जाए तो ऊपर वाले की मर्ज़ी।

लैला ने मजनूँ से शादी नहीं रचाई थी
शीरी भी फरहाद की दुल्हन कब बन पाई थी
सोहनी को महिवाल अगर मिल जाता, तो क्या होता
कुछ न होता बस परिवार नियोजन वाला रोता
होते बच्चे, सिल-सिल कच्छे, बन जाता वो दर्ज़ी।

सक्सेना जी घर में झाड़ू रोज़ लगाते हैं
वर्मा जी भी सुबह-सुबह बच्चे नहलाते हैं
गुप्ता जी हर शाम ढले मुर्गासन करते हैं
कर्नल हों या जनरल सब पत्नी से डरते हैं
पत्नी के आगे न चलती, मंत्री की मनमर्ज़ी।

बड़े-बड़े अफ़सर पत्नी के पाँव दबाते हैं
गूंगे भी बेडरूम में ईलू-ईलू गाते हैं
बहरे भी सुनते हैं जब पत्नी गुर्राती है
अंधे को दिखता है जब बेलन दिखलाती है
पत्नी कह दे तो लंगड़ा भी, दौड़े इधर-उधर जी।

पत्नी के आगे पी.एम., सी.एम. बन जाता है
पत्नी के आगे सी एम, डी.एम. बन जाता है
पत्नी के आगे डी. एम. चपरासी होता है
पत्नी पीड़ित पहलवान बच्चों सा रोता है
पत्नी जब चाहे फुड़वा दे, पुलिसमैन का सर जी।

पति होकर भी लालू जी, राबड़ी से नीचे हैं
पति होकर भी कौशल जी, सुषमा के पीछे है
मायावती कुँवारी होकर ही, सी.एम. बन पाई
क्वारी ममता, जयललिता के जलवे देखो भाई
क्वारे अटल बिहारी में, बाकी खूब एनर्जी।

पत्नी अपनी पर आए तो, सब कर सकती है
कवि की सब कविताएं, चूल्हे में धर सकती है
पत्नी चाहे तो पति का, जीना दूभर हो जाए
तोड़ दे करवाचौथ तो पति, अगले दिन ही मर जाए
पत्नी चाहे तो खुदवा दे, घर के बीच क़बर जी।

शादी वो लड्डू है जिसको, खाकर जी मिचलाए
जो न खाए उसको, रातों को, निंदिया न आए
शादी होते ही दोपाया, चोपाया होता है
ढेंचू-ढेंचू करके बोझ, गृहस्थी का ढोता है
सब्ज़ी मंडी में कहता है, कैसे दिए मटर जी।

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