Parakashtha...............
अबके हम बिछडे तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
ढूंढ उजडे हुए लोगों में वफ़ा के मोती,
ये खज़ाने तुझे मुमकिन है खराबों में मिलें
तू खुदा है ना मेरा इश्क फ़रिश्तों जैसा,
दोनो इन्सां हैं तो क्यो इतने हिजाबों में मिलें
गम-ए-दुनिया भी गम-ए-यार में शामिल कर लो,
नशा बढता है शराबें जो शराबों में मिलें
आज हम दार पे खैंचे गए जिन बातों पर,
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
अब न वो मैं हूं न तू है न वो माज़ी है "फ़राज़",
जैसे दो शक्स तमन्ना के सराबों में मिलें
_______________जनाब अहमद फ़राज़ साहब
2 comments:
Kya Baat
Kya Baat
Kya Baat...............
Bahot Khoob...... Ustad Divya.....
ANkit bhai wah Faraz Boliye !!!
I love all creations by FARAZ he was just Great .. :)
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